वैष्णव जन तो तेने कहिए जे

Vaishnav Jan To Tene Kahiye Je – written by aadi kavi of 15th century Narsinh Mehta

वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे।
पर दु:खे उपकार करे तोये, मन अभिमान ना आणे रे॥1॥
सच्चा वैष्णव वही है, जो दूसरों की पीड़ा को समझे। दूसरे के दु:ख में उपकार करने पर भी जिसके मन में कोई अभिमान न आए।

सकल लोक मां सहुने वन्दे, निंदा न करे केनी रे।
वाच काछ मन निश्छल राखे, धन धन जननी तेनी रे॥2॥
जो सभी का सम्मान करे और किसी की निंदा न करे। जो अपनी वाणी, कर्म और मन को निश्छल रखे, उसकी मां (धरती मां) धन्य-धन्य है।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी परस्त्री जेने मात रे।
जिह्वा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे॥3॥
जो सबको समान दृष्टि से देखे, सांसारिक तृष्णा से मुक्त हो, पराई स्त्री को अपनी मां की तरह समझे। चाहे जो हो अपनी ज़ुबान से असत्य न बोले, दूसरों के धन को पाने की इच्छा न करे।

मोह माया व्यापे नहिं जेने दृढ़ वैराग्य जेना मन मां रे।
राम नाम शु ताली रे लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे॥4॥
जो मोह माया में व्याप्त न हो, जिसके मन में दृढ़ वैराग्य हो। जो हर क्षण मन में राम नाम का जाप करे, उसके शरीर में सारे तीर्थ विद्यमान हैं।

वणलोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे।
भणे नरसैयो तेनु दर्शन करतां, कुल एकोतेर तार्या रे॥5॥
जिसने लोभ, कपट, काम और क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली हो। ऐसे वैष्णव के दर्शन मात्र से ही, परिवार की इकहत्तर पीढ़ियां तर जाती हैं, उनकी रक्षा होती है।

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