धम्मो मंगल-मुक्किट्ठं, अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमंसंति, जस्स धम्मे सया मणो।।१।।
धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं
जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्ढिओ।
संती संतिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं।।२।।
महर्द्धिक और लोक में शांति करने वाले शांतिनाथ चक्रवती ने
भारतवर्ष को छोड़कर अनुत्तर गति प्राप्त की।
देव-दाणव-गंधव्या, जक्ख-रक्खसकिन्नरा।
बेभयारिं नमंसंति, दुक्करं जे करंति तं।।३।।
उस ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर-
ये सभी नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है।
मंगलं मतिमान भिक्षु, मंगलं भारमल्लकः,
मंगलं रायचन्द्राद्या, मंगलं तुलसी गुरुः।
महाप्रज्ञोऽस्तु मंगलं, महाश्रमणोऽस्तु मंगलं, तेरापंथोऽस्तु मंगलम।।४।।
मतिमान् आचार्य भिक्षु मंगल हैं। आचार्य भारमल्ल मंगल हैं।
आचार्य रायचन्द्र आदि मंगल हैं। आचार्य तुलसी गुरु मंगल हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ मंगल हैं। आचार्य महाश्रमण मंगल हैं। तेरापंथ धर्मसंघ मंगल हैं।
