संयममय जीवन हो।
नैतिकता की सुर-सरिता में, जन-जन मन पावन हो।।

अपने से अपना अनुशासन, अणुव्रत की परिभाषा,
वर्ण, जाति या सम्प्रदाय से मुक्त, धर्म की भाषा।
छोटे -छोटे संकल्पों से मानस परिवर्तन हो।।

मैत्री -भाव हमारा सबसे, प्रतिदिन बढ़ता जाए,
समता, सह-अस्तित्व, समन्वय-नीति सफलता पाए।
शुद्ध साध्य के लिए नियोजित मात्र शुद्ध साधन हो।।

विद्यार्थी या शिक्षक हो, मजदूर और व्यापारी,
नर हो नारी, बने नीतिमय जीवनचर्या सारी।
कथनी-करनी की समानता में गतिशील चरण हो।।

प्रभु बनकर के ही हम प्रभु की पूजा कर सकते हैं,
प्रामाणिक बनकर ही संकट-सागर तर सकते हैं।
आज अहिंसा-शौर्य-वीर्य संयुत जीवन-दर्शन हो।।

सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा,
“तुलसी”अणुव्रत सिंहनाद सारे जग में पसरेगा।
मानवीय आचार -संहिता में अर्पित तन -मन हो।।

लय: चैत्य पुरुष जग जाए

रचयिता: आचार्य श्री तुलसी

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