बहुत वर्ष पहले की बात है, जंगल के पास एक साधु तपस्वी का एक आश्रम था। उस आश्रम में बहुत सारे विद्यार्थी भी थे, जो साधु तपस्वी से ज्ञान अर्जित करने के उद्देश्य से आश्रम में आते और अपने शिक्षा काल के दौरान वहीं रहते थे। सभी विद्यार्थी उस साधु तपस्वी को गुरु जी कहकर पुकारते थे। आश्रम में नित्य दिनचर्या अनुसार प्रतिदिन शिक्षा-दीक्षा का कार्यक्रम चलता रहता था। गुरुजी नियमित रूप से ध्यान साधना भी किया करते थे।
एक दिन आश्रम में एक बिल्ली का बच्चा आ गया। गुरुजी ने उसे देखा और दयावश उसे दूध पिलाया और अपने साथ आश्रम में रख लिया। वह बिल्ली का बच्चा गुरु जी को बहुत चाहने लगा और उन्हीं के साथ रहने लगा। लेकिन उसके साथ रहने से एक समस्या उत्पन्न होने लगी। गुरु जी जब भी ध्यान साधना करने बैठते तो वह बिल्ली का बच्चा कभी उनकी गोद में कभी उनके कंधे पर चल जाता और उनके ध्यान में भंग डाल देता।
आखिरकार गुरूजी ने अपने एक विद्यार्थी को बुलाकर कहा देखो मैं जब शाम को ध्यान पर बैठू, उससे पहले तुम इस बच्चे को दूर किसी पेड़ से बॉध आया करो। अब तो यह नियम हो गया, गुरूजी के ध्यान पर बैठने से पहले वह बिल्ली के बच्चे को पेड़ से बॉधा जाने लगा ।
एक दिन गुरूजी की मृत्यु हो गई, तो गुरुजी के एक प्रमुख विद्यार्थी को आश्रम का अग्रणी बनाया गया।
अब वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पहले बिल्ली का बच्चा पेड़ पर बॉधा जाता। किसी ने भी इसके पीछे के कारण को जानने की कोशिश नहीं की, बस एक परम्परा और रीति बनाकर बिल्ली के बच्चे को पेड़ से बांधते रहे। फिर एक दिन एक और अनर्थ हो गया, बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई जब वह बिल्ली ही मर गयी। सारे शिष्यों की बैठक हुयी, सबने विचार विमर्श करके कहा कि जब तक बिल्ली पेड़ से नहीं बॉधी जाती थी, तब तक गुरूजी ध्यान पर नहीं बैठ सकते। अत: पास के गॉवों से या कहीं से भी एक बिल्ली को लाना ही होगा।
आखिरकार एक बिल्ली ढूँढ ली गई, बस फिर रीति अनुसार उसे पेड़ पर बॉधने के बाद गुरूजी ध्यान पर बैठते थे।
उसके बाद न जाने कितनी बिल्लियॉ मरी और न जाने कितने गुरूजी बदले। लेकिन आज भी जब तक पेड़ से बिल्ली न बॉधी जाये, तब तक गुरूजी ध्यान पर नहीं बैठते। कोई पूछ ले तो उस पर गुरुओं की समझदारी पर शक करने जैसा मानकर बेवकूफ कहा जाता “हमारे पुराने सब गुरुजी भी यही करते रहे, वे सब तो गलत नहीं हो सकते , यह हमारी रीत है और इसे करने में कोई नुकसान नहीं है।“
हम सबने भी एक नहीं; बहुत सी ऐसी बिल्लियॉ पाल रखी होगी। आइये जानें इन बिल्लियों के बारे में और मुक्त करें उन्हें इस बेमानी परंपरा से।
ऐसी परम्पराओं और गलतफमियों को अब और ना बढ़ने दें, और अगली बार ऐसी किसी भी चीज पर विश्वास करने से पहले सोच लें की कहीं हम जाने – अनजाने में भी कोई अन्धविश्वास रुपी बिल्ली तो नहीं पाल रहे है |
