Death Rituals – Sanskaar Vidhi

मृत्यु संस्कार

  • प्राणांत के पश्चात एक मुहूर्त (48 मिनट) तक मृतक को स्थानांतरित न किया जाए.
  • मृतक के आसपास का वातावरण अध्यात्ममय हो, इसका विशेष लक्ष्य रखा जाए. अध्यात्ममय वातावरण की विधाएं हैं:
    • ध्यान
    • उक्कित्तणं (लोगस्स पाठ) का जाप
    • मंगल ध्वनि (ॐ णमो अरिहंताणं)
    • वैराग्यवर्धक पद्य या गीतिकाएँ
  • मृतक की शरीर शुद्धि के पश्चात उसे नूतन वस्त्र धारण कराए जाएँ.
  • मृतक के पेट पर आटे का पिण्ड और पैसा न रखा जाए.
  • मृतक को उठाते समय प्रथा रूप में बांग न दी जाए और न ही प्रथा रूप से रोया जाए.
  • अर्थी ले जाते समय रास्ते में घोष के लिए कुछ प्रकार निम्न हैं:
    • अरिहंत नाम सत्य है, भगवंत नाम सत्य है.
    • साचा है अरिहंत नाम आगे ये ही आए काम.
    • अरिहंतो की ये वाणी, अमर नहीं कोई प्राणी.
    • मंगल ध्वनि (ॐ णमो अरिहंताणं)
  • बीच मार्ग में पानी अन्न आदि न बिखेरा जाए.
  • मृतक को ओढाए हुए दुशाले आदि को वापस उतार कर फाड़ा न जाए.
  • मृतक के कफ़न के टुकड़ों को वापस घर न लाया जाए.
  • दाह-संस्कार के समय शमशान भूमि का वातावरण अध्यात्ममय हो, इसकी सावधानी रखी जाए.
  • दाह संस्कार के पश्चात मृतक के परिवार जन शरीर शुद्धि करके यथासंभव मिलकर निकटतम विराजित साधू-साध्वियों के दर्शन करें. यदि दर्शन संभव न हो तो घर पर ही सब मिलकर उपासना कक्ष में उक्कित्तणं (लोगस्स पाठ) का ध्यान करें.
  • मृतक के पीछे रूढ़ परम्पराओं को प्रश्रय न दिया जाए जैसे
    • कागोल करना
    • फूल डालना
    • जौ, तिल आदि चढाना
    • पथवारी सींचना
    • संवेदना प्रकट करने वालों के सम्मुख पानी का लोटा रखना आदि
  • मृतक के पीछे किसी प्रकार का भोज न किया जाए और न ही हाँती बांटी जाए.
  • शोक बैठक, पोतिया, चद्दर आदि शोक चिह्नों को अधिक दिनों तक न रखा जाए. (अधिक से अधिक सात दिन)
  • शोक सम्पन्नता के समय आध्यात्मिक अनुष्ठान किए जाएँ. जैसे
    • परमेष्ठी वन्दना
    • अर्हत वन्दना
    • शांत सुधारस की गीतिकाएँ 1 से 4
    • मृतक के गुणों की स्मृति
    • ध्यान आदि
  • विधवा अथवा विदुर के साथ किसी प्रकार का उपेक्षा या तिरस्कार पूर्ण व्यवहार न किया जाए.

 

मृतक के सम्बन्ध में परिवार वालों की ओर से जो पत्र दी जाते हैं उनमें भी विविधताएं होती हैं. एकरूपता की दृष्टि से एक प्रारूप यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. इसका उपयोग पत्र के रूप में अपनी पारिवारिक अनुकूलता के अनुसार किया जा सकता है.

 

स्मृति संवेदना
‘जोवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपायचंचलं’

 

मान्यवर,
असीम संवेदना और भारी ह्रदय से आपको सूचित किया जाता है कि दिनांक __________________ को मेरे/हमारे __________________________ का देहावसान हो गया. यह प्रसंग हमारे लिए संसार की अनित्यता का साकार अनुभव कराने वाला था. ऎसी संविग्न स्थिति में ही देव, गुरु और धर्म की सार्थकता का बोध होता है.
‘अणितिए अयंवासे’ – ज्ञाति जनों के साथ संवास अनित्य है – भगवान महावीर की इसा यथार्थ वाणी और पूज्य _________________________ के अध्यात्म संबल से हम अनुभव करते हैं कि ऐसे प्रसंगों पर आर्त्तध्यानमूलक उअक्रम की कमी करके ही शान्ति, समाधि और सांत्वना प्राप्त की जा सकती है. अतः ह्रदय में उनके गुणों की स्थायी स्मृति करते हुए भी प्रथा रूप में शोक प्रदर्शन का कार्य न रखकर नमस्कार महामंत्र और मंगल पाठ की स्मृति के साथ उसे तीसरे दिन ही संपन्न कर दिया जाएगा. इसलिए कृपया पत्र द्वारा ही संवेदना प्रेषित करने का कष्ट करें. सभी सुह्रिदयजनों की सहानुभूति हमारे साथ है.
 

सभी लोग चाहते हैं कि जीवन हल्का हो, किन्तु कठिनाई यह है कि वे उसकी प्रक्रिया को नहीं अपनाते. प्रक्रिया को अपनाए बिना केवल कथन मात्र से जीवन हल्का हो जाए तो इसका अर्थ यह होगा कि बिना परिश्रम के ही मनुष्य को सब कुछ प्राप्त हो सकता है. पर वह ‘न भूयं न भविस्सई’ अर्थात न कभी हुआ है न कभी होगा. लेकिन यदि प्रयोग किये जाएँ तो मेरे विचार से निश्चित ही जीवन हल्का हो सकता है.  

– आचार्य श्री तुलसी Acharya Shri Tulsi

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