प्रज्ञा के दीप जलेंगे, मन के संकल्प फलेंगे
क्या क्या पाना है पहले आंक लो ओ संतों!
क्या क्या पाना है गहरे झाँक लो
योगक्षेम वर्ष है इसमें नव वैभव को प्राप्त करो
और प्राप्त के संरक्षण में भी पौरुष पर्याप्त करो
आगे अब चरण बढ़ेंगे हिमगिरि के शिखर चढ़ेंगे
वैज्ञानिक युग में जीने का बस उसको अधिकार मिला
जिसको जीवन के विकास का आध्यात्मिक आधार मिला
केवल जीना क्या जीना जीना तो इमरत पीना
कोरी आध्यात्मिकता युग को प्राण नहीं दे पायेगी
कोरी वैज्ञानिकता युग को त्राण नहीं पायेगी
दोनों की प्रीति जुड़ेगी युगधारा तभी मुड़ेगी
स्वस्थ समाज नई रचना का नारा सबको प्यारा है
बिना व्यक्ति-संरचना के रह जाता केवल नारा है
दोनों की सम्यग युति हो अंतर्दर्शन की द्युति हो
सत्य शोध की खुली दिशाएं यह अभियान ज़रूरी है
ज्ञान अतीन्द्रीय जगे न जब तक सारी बात अधूरी है
समता का नेत्र खुलेगा जागृति का रंग घुलेगा
है अतीत बुनियाद हमारी वर्तमान से जुड़े रहें
सह-अस्तित्व समन्यव संयुत अनेकांत की बात कहें
प्रायोगिक चले प्रशिक्षण क्षण क्षण हो आत्मा निरीक्षण
जीवन शैली श्रम आधारित साधर्मिक वात्सल्यमयी
संघपुरुष हो सदा चिरायु जिनशासन हो कालजयी
तुलसी संधान सफल हो गण गौरव अटल अचल हो
pragyaa ke deep jalenge acharya tulsi aachaarya tulsi prajna ke deep
