Wedding Rituals – Jain Sanskaar Vidhi

जैन संस्कार विधि 

सभी लोग चाहते हैं कि जीवन हल्का हो, किन्तु कठिनाई यह है कि वे उसकी प्रक्रिया को नहीं अपनाते. प्रक्रिया को अपनाए बिना केवल कथन मात्र से जीवन हल्का हो जाए तो इसका अर्थ यह होगा कि बिना परिश्रम के ही मनुष्य को सब कुछ प्राप्त हो सकता है. पर वह ‘न भूयं न भविस्सई’ अर्थात न कभी हुआ है न कभी होगा. लेकिन यदि प्रयोग किये जाएँ तो मेरे विचार से निश्चित ही जीवन हल्का हो सकता है.  

– आचार्य श्री तुलसी Acharya Shri Tulsi


विवाह संस्कार

आवश्यक निर्देश
  1. पुत्र या पुत्री का सम्बन्ध किसी प्रकार के प्रलोभन या दबाव से न करके उनकी योग्यता और इच्छा को ध्यान में रखकर किया जाए.
  2. सगाई या विवाह के प्रसंग पर किसी प्रकार के लेने का ठहराव न किया जाए.
  3. सगाई की रस्म (साता सुपारी) एवं वधु का खोल भरने में सादगी का परिचय दिया जाए.
  4. सगाई के पश्चात विवाह से पहले वधु पक्ष यदि वर पक्ष को मिठाई आदि देना चाहे तो कुल ग्यारह किलो से अधिक न हो.

विवाह दिवस की स्थापना
विवाह दिवस की स्थापना सात दिन पहले तक की जा सकती है. उस अवसर पर वर तथा वधु पक्ष अपने परिवार जन को एकत्रित कर सबके बीच निर्दिष्ट विधि से घोषणा करें.

विधि
  • जिसका विवाह होने वाला है उसे सबके बीच उच्चासन पर बिठाया जाए.
  • अभिभावक नमस्कार महामंत्र व मंगल पाठ के बाद घोषणा करें
“मुझे आप परिजनों के बीच यह घोषणा करते हुए हर्ष हो रहा है कि चिरंजीव/सौभाग्याकांक्षिनी ______________ पुत्र/पुत्री _________________ का शुभ विवाह आगामी संवत ________ मिति ____________ वार ________ दिनांक __________________ को _____________ निवासी श्री एवं श्रीमती ______________________ के पुत्र/पुत्री _______________________ के साथ होना निश्चित हुआ है. इसमें चिरंजीव/ सौभाग्याकांक्षिनी ______________________ की पूर्ण स्वीकृति है.
  • वर पक्ष एवं वधु पक्ष द्वारा विवाह की घोषणा एक ही दिन होनी चाहिए.

बत्तीसी
जिसका विवाह होता है उसकी माता अपने पीहर वालों को विवाह में सम्मिलित होने के लिए निमंत्रित करने जाए तो अपने साथ सिर्फ कुमकुम, रोली और चावल ले जाए. यदि चाहे तो मिठाई भी ले जा सकती है जो कुल पांच किलो से अधिक न हो. पीहर वालों को तिलक करके विवाह में सम्मिलित होने के लिए निमंत्रित करें.

मायरा
  • मायरे में अपनी बहन, बहनोई, भांजा और भांजी के अतिरिक्त किसी और के लिए वेश-पोशाक, पगडी आदि न दिए जाएँ.
  • मायरे में जो कुछ भी दिया जाए उसका दोनों पक्षों की ओर से प्रदर्शन नहीं किया जाए.


विवाह संस्कार
  • विवाह के दिन वर-वधु को अपनी सुविधानुसार वस्त्र धारण कराये जाएँ.
  • वर नमस्कार महामंत्र, मंगल पाठ का स्मरण तथा पूज्य जनों को नमस्कार करके अपने निकटतम सम्बन्धियों के साथ वधु के घर को प्रस्थान करे.
  • वर की निकासी के समय सादगी का विशेष ध्यान रखा जाए. आतिशबाजी तथा नृत्य आदि न किए जाएँ.
  • दोनों पक्षों के अभिभावकों द्वारा अपने अपने परिजनों तथा इष्ट मित्रों को कन्या-गृह में निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने का निमंत्रण दिया जाए.
  • वधु पक्ष द्वारा समागत व्यक्तियों के स्वागतार्थ दूध, चाय आदि पेय पदार्थ तथा अल्पाहार की व्यवस्था की जा सकती है.
  • वर के आगमन पर वधु की माता द्वारा वर के तिलक लगाने के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार की रूढ़ी को प्रश्रय न दिया जाए.
  • विवाह-मंडप में वर-वधु को पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बिठाया जाए. कन्या वर के दाईं ओर बैठे.
  • विवाह-संस्कार का प्रारम्भ कन्याओं या महिलाओं द्वारा मंगलगीत से किया जाए.
  • संस्कारक मंगलसूत्र के उच्चारण पूर्वक विवाह-संस्कार संपन्न कराए.

मंगल सूत्र

(क) नमस्कार महामंत्र
ओम ह्रीं श्रीं अर्हं अर्हभ्यो नमो नमः
ओम ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धेभ्यो नमो नमः
ओम ह्रीं श्रीं अर्हं आचार्येभ्यो नमो नमः
ओम ह्रीं श्रीं अर्हं उपाध्यायेभ्यो नमो नमः
ओम ह्रीं श्रीं अर्हं गौतमस्वामिप्रमुख सर्व साधुभ्यो नमो नमः

णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।
एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्पणसणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलं॥

(ख) मंगल पाठ
अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं
केवलि पण्णत्तो धमो मंगलं

अरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा
केवलि पण्णत्तो धमो लोगुत्तमो

अरहंते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि
केवलि पण्णत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि

(ग)
अर्हन्तं स्थापयेन्मूर्ध्नि सिद्धं चक्षुर्ललाटके.
आचार्यं श्रोत्रयोर्मध्ये उपाध्यायं तु नासिके..

साधुवृन्दम मुखस्याग्रे मनः शुद्धिम विधाय च.
सूर्य-चंद्र-निरोधेन सुधी: सर्वार्थसिद्धये..

दक्षिणे मदनद्वेषी वामपार्श्वे स्थितो जिन:.
अगसंधिषु सर्वज्ञः परमेष्ठी शिवंकर:..

पूर्वाशां च जिनो रक्षेद् आग्नेयीं विजितेन्द्रियः.
दक्षिणाशां परं ब्रह्म नैॠतीं च त्रिकालवित्..

पश्चिमाशां जगन्नाथो वायव्यां परमेश्वरः.
उत्तरां तीर्थकृत सर्वामीशानेऽपि निरंजन:..

पातालं भगवानर्हन्नाकाशं पुरुषोत्तमः.
रोहिणीप्रमुखा देव्यो रक्षन्तु सकलं कुलम्..

ॠषभो मस्तकं रक्षेद् अजितोऽपि विलोचने.
संभवः कर्णयुगलेऽभिनन्दनस्तु नासिके..

ओष्ठौ श्री सुमति रक्षेद् दन्तान् पद्मप्रभुर्विभुः.
जिह्वां सुपार्श्वदेवोऽयं तालुं चन्द्रप्रभाऽभिधः..

कंठं श्री सुविधी रक्षेद् ह्रदयं जिनशीतलः.
श्रेयांसो बाहुयुगलं वासुपूज्यः करद्वयम्..

अंगुलीर्विमलो रक्षेद् अनन्तोऽसौ नखानपि.
श्री धर्मोऽप्युदरारथीनि श्रीशांतिर्नाभिमंडलम्..

श्री कुंथुर्गुह्यकं रक्षेद् अरो लोमकटीतटम्.
मल्लिरुरुपृष्ठमंशं पिंडिकां मुनिसुव्रतः..

पादागुलीर्नमी रक्षेद् श्रीनेमिश्चरणद्वयम्.
श्री पार्श्वनाथः सर्वांगं वर्धमानाश्चिदात्मकम्..

पृथिवी-जल-तेजस्क-वाय्वाकाशमयं जगत्.
रक्षेदशेषपापेभ्यो वीतारागो निरंजन:..

मंगलम भगवान वीरो मंगलम गौतम प्रभु.
मंगलम स्थूलभाद्राद्या जैनधार्मोस्तु मंगलम..

विवाह संस्कार विधि
  • वर का अभिभावक खडा होकर प्रस्ताव करे.
    “मैं _____________________  सौभाग्यवती __________________ पुत्री श्री _____________________ को अपने पुत्र ______________________ की जीवनसंगिनी बनाने का प्रस्ताव देता हूँ. “
  • वधु का अभिभावक स्वीकृति दे.
    “मैं __________________________ अपनी पुत्री ______________________ को उसकी और परिवार की सहमति के साथ आज मिति _________ संवत ________ वार ____________ दिनांक _________ को __________ बजे इस स्थान ______________________________________________________ में परिजनों की साक्षी से श्री ______________________________ के पुत्र श्री _____________________ निवासी ____________________________________________________________ की जीवनसंगिनी बनने की स्वीकृति देता हूँ.” आज से मेरी पुत्री के सुखमय जीवन का उत्तरदायित्व श्री _________________ का होगा.”
  • वर की स्वीकृति
    “मैं _______________________ पुत्र श्री _______________________________ निवासी ________________________________________________________ सुश्री _____________________________________ पुत्री श्री ________________________________ को सहर्ष पत्नी रूप में स्वीकार करता हूँ.”
  • वधु  की स्वीकृति
    “मैं _______________________ पुत्री श्री _______________________________ निवासी ________________________________________________________ श्री _____________________________________ पुत्र श्री ________________________________ को सहर्ष पति रूप में स्वीकार करती हूँ.”

संस्कारक निम्न मंत्रोच्चारण करे:
(क)
ॐ नमः पार्श्वनाथाय, धरणेन्द्रपद्मावतिसहिताय विषहर
फुलिंगमंगलाय ॐ ह्रीं श्रीं चिंतामणये पार्श्वनाथाय.  

(ख)
ॐ ह्रीं श्रीं
ग्रहाश्चंद्र-सूर्यांगारक-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनैश्चर राहुकेतु सहिताः
खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु
मम धन-धान्य-जय विजय-सुख-सौभाग्य-धृति-कीर्ति-शान्ति-तुष्टि-पुष्टि-बुद्धि-लक्ष्मी-धर्मार्थ
कामदाः स्युः स्वाहा.

इसके बाद संस्कारक द्वारा वर वधु को निम्नलिखित सप्तपदी का उच्चारण कराया जाए:
  1. हम दोनों एकपति तथा एकपत्नी व्रत का पालन करेंगे.
  2. हम दोनों एक-दूसरे के हर उचित कार्य में सहायक होंगे.
  3. हम दोनों एक दूसरे की सहमति का पूर्ण ख्याल रखेंगे.
  4. हम दोनों एक-दूसरे पर पूर्ण विश्वास करेंगे.
  5. हम दोनों एक-दूसरे के परिजनों का सम्मान करेंगे और यथासंभव सेवा करेंगे.
  6. हम दोनों व्यसन-मुक्त रहेंगे.
  7. हम एक-दूसरे के धार्मिक विश्वास में व्याघात नहीं करेंगे.
इन प्रतिज्ञाओं के साथ आज से हम दोनों एक दूसरे को अपना जीवन अर्पित करते हैं.

इसके पश्चात वर-वधु परस्पर माल्यार्पण और/या मुद्रिका परिवर्तन करें. संस्कारक दोनों का पाणिग्रहण (हथलेवा) कराए. इस समय वर-वधु समवेत स्वर में बोलें: “हम दोनों परिजन वर्ग की साक्षी से एक सूत्र में बंधे हैं, और इस सम्बन्ध को आजीवन निभाएंगे.”

तत्पश्चात वर-वधु अपना स्थान परिवर्तन करें. वर, वधु के दाईं ओर बैठे.

संस्कारक द्वारा आशीर्वाद
तुष्टिरस्तु! पुष्टिरस्तु! वृद्धिरस्तु! कल्याणमस्तु! अविघ्नमस्तु! आयुष्यमस्तु! आरोग्यमस्तु! कर्मसिद्धिरस्तु! इष्टसंपत्तिरस्तु! पापानि शाम्यन्तु! पुण्यं वर्धतां! श्री: वर्धतां कुलगोत्रे चाभिवर्धेंताम्! स्वस्ति भद्रं चास्तु!

इसके पश्चात नव दंपत्ति अभिभावक तथा अन्य समागत अतिथियों का अभिवादन कर सबसे आशीर्वाद प्राप्त करें.

विदाई
मंगलगीतों से कार्यक्रम संपन्न किया जाए.
वर-वधु को विदाई उसी समय या दूसरे दिन सुविधानुसार डी जा सकतीहै. वधु का पिटा अपनी पुत्री को कुछ भी दे उसका दोनों पक्षों की ओर से प्रदर्शन न किया जाए.

ज्ञातव्य
  1. बारात एक समय से अधिक न ठहरे. यातायात असुविधा की स्थिति में दो समय ठहर सकती है.
  2. बारात में आने-जाने का खर्च एवं रास्ते की भोजन-व्यवस्था आदि की जिम्मेदारी वर पक्ष की रहे.
  3. नशीले पदार्थों का उपयोग न हो.
  4. वर पक्ष की ओर से हाँती आदि न बांटी जाए.
  5. किसी प्रकार की अर्थहीन रूढ़ी को प्रश्रय न दिया जाए.
  6. विवाह संस्कार दिन में भी संपन्न किया जा सकता है.


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