वंदना
भाव भीनी वंदना भगवान चरणों में चढ़ाएँ
शुद्ध ज्योतिर्मय निरामय रूप अपने आप पाएँ
ज्ञान से निज को निहारें दृष्टि से निज को निखारें
आचरण की उर्वरा में लक्ष्य तरुवर लहलहाएँ
सत्य में आस्था अचल हो चित्त संशय से न चल हो
सिद्ध कर आत्मानुशासन विजय का संगान गाएँ
बिंदु भी हम सिंधु भी हैं भक्त भी भगवान भी हैं
छिन्न कर सब ग्रंथियों को सुप्त चेतन को जगाएँ
धर्म है समता हमारा कर्म समतामय हमारा
साम्ययोगी बन हृदय में स्रोत समता का बहाएँ