परमेष्ठी वंदना
वन्दना आनन्द पुलकित विनयनत हो मैं करूं
एक लय हो एक रस हो भाव तन्मयता वरूं
णमो अरिहंताणं
सहज निज आलोक से भासित स्वयं सम्बुद्ध हैं
धर्म तीर्थंकर शुभंकर वीतराग विशुद्ध हैं
गति प्रतिष्ठा त्राण दाता आवरण से मुक्त हैं
देव अर्हत दिव्य योगज अतिशयों से युक्त हैं
णमो सिद्धाणं
बंधनों की शृंखला से मुक्त शक्ति स्रोत हैं
सहज निर्मल आत्मलय में सतत ओतःप्रोत हैं
दग्ध कर भव बीज अंकुर अरुज अव अविकार हैं
सिद्ध परमात्मा परम ईश्वर अपुनरवतार हैं
णमो आयरियाणं
अमलतम आचारधारा में स्वयं निष्णात हैं
दीप सम शत दीप दीपन के लिए प्रख्यात हैं
धर्मशासन के धुरन्धर धीर धर्माचार्य हैं
प्रथमपद के प्रवर प्रतिनिधि प्रगति में अनिवार्य हैं
णमो उवज्झायाणं
द्वादशांगी के प्रवक्ता ज्ञान गरिमा पुंज हैं
साधना के शांत उपवन में सुरम्य निकुंज हैं
सूत्र के स्वाध्याय में संलग्न रहते हैं सदा
उपाध्याय महान श्रुतधर धर्म शासन संपदा
णमो लोए सव्वसाहूणं
लाभ और अलाभ में सुख दुख में मध्यस्थ हैं
शांतिमय वैराग्यमय आनंदमय आत्मस्थ हैं
वासना के विरत आकृति सहज परम प्रसन्न हैं
साधना धन साधु अन्तर्भाव में आसन्न हैं